आंधिया चलती रही, दिये को बुझाती रही,
इस अंधड़ तूफ़ान में भी एक दिया जलता रहा,
थपेड़े सहता रहा पर बुझा नहीं,
जिंदगी भी इसी तरह थपेड़े देती है,
कुछ बुझ जाते है और कुछ और जोश में आ जाते है,
दीपक जब तक जलता है प्रकाश देता है,
बाद में घूरे पर फेंक दिया जाता है।
बुझने से ज्यादा जलने में सार्थकता है,
कम से कम अपने चारो ओर प्रकाश तो फैला ही गया।
अपनी जिंदगी तो सार्थक कर गया।
स्वयं जला पर दूसरों का अंधेरा दूर कर गया
अमावस की रात को भी उजाला कर गया
जलने में ही जीवन की सार्थकता समझी
जलाने में नहीं
जीवन का महत्तव समझा गया
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