रास्ते पर जाते जाते दिखा, एक पत्थर पड़ा था।
जो जाता, उस पत्थर को ठोकर मारकर आगे बढ़ जाता।
किसी ने यह भी नहीं सोचा की उसको उठा कर किनारे रख दे।
कभी - कभी जिंदगी में भी ठोकर पर ठोकर मिलते रहते है,
उस समय एक सहानुभूति की और प्रेम की दरकार होती है।
दुखी व्यक्ति के साथ थोड़ी सी सहानुभूति भी मरहम का काम करती है।
यह नहीं की किसी की दुःखती रग को और छेड़ उसे दुखी करना।
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