किसान मर रहा था, नेता भाषण दे रहे थे,
इतना संवेदनहीन " आप " के लोग, इस पर भी राजनीति,
मौका ताड कर, गिरगिट की तरह रंग बदलना,
चेहरे के हाव - भाव और इशारे, बात को किस तरह बनाना, माफ़ी माँगना,
मगरमछ के आसु बहाना, इनसे ज्यादा अच्छी तरह से कौन जान सकता है,
यह तो साबित हो गया कि " आप " आम आदमी के लिए नहीं,
बल्कि " अपने आप " के लिए हैं।
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