जब जिसका मन आया मीडिया पर प्रहार,मीडिया पर कभी पक्षपात का आरोप तो कभी बाजारू कहना
जनतंत्र के चौथे स्तम्भ पर प्रहार,कभी उसके दफ्तर पर प्रहार और तोड़फोड़
मीडिया क्या करे?सत्य को नहीं दिखये
लोग कुछ भी बोलते रहे,नेता अनर्गल संवाद करते रहे ,मीडिया मूकदर्शक बना रहे
मीडिया पर तोड़ मरोड़कर बात को बताने का इल्जाम
नेता अपने गिरेबान में नहीं झांकते ?
स्वयं के संवाद पर काबू नहीं
प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्रियों ,नेता सभी का मीडिया पे आरोप
उनके पक्ष में बोले तो ठीक अन्यता मीडिया हैलदोषी
इन लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए की आपको यहाँ तक पहुंचाने में मीडिया की भी बड़ी भूमिका है ।
कभी मीडिया पर बैन
कभी इमरजेन्सी में तो कभी आंतकवादी हमले को लेकर
यह तो उनका पेशे के प्रति कर्तव्य है जो उनको निभाना है
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