Sunday, 25 October 2015

शिक्षक ,छात्र और पाठशाला

शिक्षा और जीवन.   गुरू तथा पाठशाला
एक दूसरे के बिना अधूरे
हम शिक्षक ,कर्मचारी इस पाठशाला से जुडे हुए
भिन्न ,भिन्न विषय ,भिन्न भिन्न काम
भिन्न भिन्न ,धर्म   अलग अलग भाषाएँ
पर यहॉ सब एक हैं
पाठशाला के द्वार पर कदम रखते ही
सब कुछ भूल जाते हैं
घर-परिवार ,इच्छाएं-जरूरते
याद रहती है विद्यालय की घंटी ,टाईम टेबल ,विषय
पढना -पढाना ,सीखना -सीखाना
पेपर बनाना ,जॉचना ,रिजल्ट तैयार करना
सालों से यही सिलसिला चल रहा है
छात्र आते - जाते रहे  ,हम वहीं के वहीं रहे
कोई मलाल नहीं ,संतोष है इस बात का
हम भविष्य निर्माण कर रहे हैं
अच्छे मार्ग पर चलना सिखा रहे हैं
और क्या चाहिए?
उन्नति के शिखर पर चढे बच्चों को देखना
यह उपलब्धि कम तो नहीं???

No comments:

Post a Comment