Saturday, 5 December 2015

हम कोई कार्य स्वेच्छा से क्यों नहीं कर सकते

पिछले दिनों एक परिवार  को सिनेमा हॉल छोडने पर मजबूर किया गया क्योंकि वे राष्ट्रगान के समय खडे नहीं हुए और वह अपमान समझा गया
यह बात दिगर है कि वह परिवार दूसरे समुदाय से था
इसलिए और तूल दिया गया
बात आज की नहीं है पैतीस -चालीस साल पहले भी जब फिल्म समाप्त होने के बाद राष्ट्रगान शुरू होता था तो लोग बाहर निकलना शुरू कर देते थे
और इसमें हर जाति -वर्ग तथा उम्र के लोग रहते थे
फिर धीरे-धीरे यह बंद हो गया
अब कुछ समय से यह फिर दिखाना शुरू हुआ है
पर फिल्म के आरम्भ में
ऐसा क्यों हो रहा है हम अपनी इच्छा सेे यह क्यों नहीं कर सकते
सबके लिए बाध्य किया जाता है तभी करेंगे
हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है विदेशी भाषा बोलने में गर्व का अनुभव करते है
विदेशी चीजों और विदेश में रहना गर्व की बात
अपने देश की बुराई करने में आनंद
१५अगस्त और २६ जनवरी को छुट्टी मिलती है इसलिए खुशी
वहीं अगर इतवार या छुट्टी के दिन आ जाये तो सारी खुशी काफूर
क्यों देशभक्ति को लादा जाता है
यह भावना तो मन से निकलनी चाहिए
राष्ट्रगान के समय मजबूरी से नहीं अपने आप खडे हो जाना
यह भावना तो होनी चाहिए
माना कि समय बदल चुका है नई पीढी को इसका भान नहीं है पर अगर बचपन से ही यह भावना मजबूत की जाय तो जबरदस्ती लादने का कोई कारण नहीं

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