Thursday, 31 December 2015

प्रकृति भी आगे ही बढना सिखाती है

आज वर्ष का अंतिम दिन है
सुबह से भगवान सूर्य भगवान भी अपने पूरे शवाब पर थे पर अब धीरे धीरे अस्ताचल की ओर प्रवेश कर रहे हैं शाम के४.४५ का समय हो रहा है
सांझ का प्रभाव पडना शुरू हो गया है
वैसे भी ठंडियों का समय हैं
प्रकाश सिमट रहा है और अंधेरा उसे अपने आगोश में ले लेगा थोडे समय बाद ही
यह समय का ही हेर फेर है जो व्यक्ति को कहॉ से कहॉ पहुँचा देती है
अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर
राजा को रंक और रंक को राजा बना देती है
बोलने वाले व्यक्ति की जुबान बंद कर देती है
गतिशील को बैठक बना देती है
यह तो बडे बडो को नहीं छोडती यहॉ तक कि
सुबह के सुर्योदय को शाम को अस्ताचल का रास्ता दिखा देती है
यही तो जीवन है पर समझ नहीं आता
ऐसा नहीं कि लोग सत्य से वाकिफ नहीं
पर व्यक्ति का अहम उसका पीछा नहीं छोडता
संसार ही नश्वर है
हर चीज को खत्म होना है
आने वाले को एक न एक दिन जाना भी है
यह साल भी हमें बहुत कुछ देकर जा रहा है
सिखा कर जा रहा है
आने वाले वर्ष को नवल और उर्जावान बनाने के लिए
कल फिर सूर्योदय होगा
कुछ नयापन लिए. नयी आशाओं के साथ
नये उमंग और जिम्मदारियों के साथ
पतझड के बाद वसंत का आना और रात के पश्चचात प्रकाश का आना तो कोई रोक ही नहीं सकता
भगवान भास्कर भी हमें यही संदेश देते हुए अस्ताचल की ओर बढ रहे हैं
कहीं दूसरी जगह अपना प्रकाश बिखेरने के लिए
वे रूकते नहीं है
पश्चिम की ओर जा रहे हैं
उनकी कृपा सब पर समान होती है
चाहे वह हम हो हमारा देश हो या पश्चिम के देश
आज के सूरज को हम सभी की भावभीनी बिदाई
कल प्रभात में आपके फिर दर्शन के लिए
नमस्कार भगवान भास्कर 

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