Saturday, 25 June 2016

अफसोस क्यों ? स्वतंत्रता का मूल्य तो चुकाना ही पडता है

अफसोस हो रहा था पर यह जीवन तो मेरा ही मॉगा हुआ था
नया - नया जोश ,नारी शक्ति और करियर बनाने का जुनून
हॉ यह नहीं पता था कि जिंदगी जोडते - घटाते बीतेगी
पति फोर्स में ,अकेले और अलग रहने का निर्णय
तबादले वाली नौकरी में पढना और करियर बनाना मुश्किल जो होता
बच्चों को संभालने के साथ नौकरी
पर इस दरभ्यान बहुत कुछ बदला
खीज आने लगी,स्वयं को और भाग्य को दोष देना
तनाव और परेशानी के कारण बीमारियों का घेरा
सपने और महत्तवकॉक्षा लुप्त होने लगी
आज उम्र के इस पडाव पर पहुँच कुछ मायने नहीं रखता.
स्मृतियॉ भी मिटने लगती है
एक कहानी पढी थी कि दो तोते होते हैं
दोनों को पकड कर शिकारी ,राजा को बेचता है
दोनों को सोने के पिंजरे में रखा जाता है ,
मनपसन्द खाना दिया जाता है
एक तोता तो खुश हो जाता है और खा- खाकर मोटा और लालची हो जाता है
दूसरा खाना- पीना छोड देता है उसे गुलामी पसन्द नहीं
परिणाम एक ज्यादा खाने और अपच तथा पेट फूलने के कारण मर जाता है
दूसरा भूखे रहने के कारण
पर दोनों ने अपना जीवन स्वयं ही चुना था
यह जीवन भी तो मैंने ही चुना है
बहुत कुछ हासिल किया
नाम ,ओहदा ,पैसा और बच्चों का भविष्य तथा आत्मनिर्भर बनाना
एक पहचान स्वयं की बनी
अफसोस क्यों!??
स्वतंत्रता का मूल्य तो चुकाना ही पडेगा

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