Tuesday, 26 July 2016

मिट्टी का मोल न कोई जाना

मिट्टी का कोई मोल न जाना
सोना ,बहुमूल्य पर मिट्टी अनमोल
मिट्टी न होती तो धरती न होती
फसल और पैदावार कहॉ होता
बरसात में उठने वाली सोँधी सुगंध न मिलती
मिट्टी से पानी का घडा और मकान बने
आज भी घडे का सानी कोई नहीं
मिट्टी में ही खेले और बडे हुए
मिट्टी ने ही पेड - पौधों को जड से जकडे रखा
मिट्टी से मूर्ति बनी ,ईश्नर को आकार दिया
मिट्टी को जैसे चाहे इस्तेमाल किया
इसी पर हल चले
रौंदा गया तो ऊपजाउ बनी
जन्मते ही मिट्टी से पहचान
मरने पर भी इसकी ही जरूरत
दो मुठ्ठी मिट्टी से अंतिम बिदाई
अंत में इसी में मिल मिट्टी हो जाना है
माटी का शरिर माटी में
सही ही है ----
माटी कहे कुम्हार से तू क्यों रौंदे मोय
एक दिन ऐसा आएगा ,मैं रौंदूगी तोय
       मिट्टी को कम मत आको ,वह अनमोल है

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