हर साल बारीश होती है
हर जगह पानी - पानी होता है
पर एक बारीश वह भी २६ जुलाई की बारीश
पूरी मुंबई पानी - पानी हो रही थी
हर मंजर खौफनाक था.
शाम से जो शुरू हुई बारीश थमने का नाम नहीं ले रही यह नजारा पहले कभी नहीं दिखा था
शहर समुंदर में तबदील हो गया था
जहॉ देखो पानी ही पानी
सडक ,रेल पटरी ,मैदान यहॉ तक कि दुमंजिले इमारते
जो जहॉ था वही थम गया
बच्चे पाठशाला में ,लोग दफ्तर में
यात्री रेल और बस में
लोग सडकों पर पानी के बहाव में
कहॉ जमीन कहॉ पानी समझ ही नहीं आ रहा था
कुछ बह गये तो कुछ वहीं दम तोड दिए.
हर सीढी ,प्लेटफॉम पर लोग खडे रहे
यहॉ तक कि गाय- भैंसे भी तबेलों में बंधी रह गई
बहुत से लोगों क्या पशु क्या लोग
सब बेहाल ,जाने गवानी पडी
रस्सी के सहारे लोगों को रेल से उतारा गया
गाडी और टेक्सी में कॉच बंद होने के कारण दम घुटने के कारण लोगों की जान चली गई
मुंबई ,पानी में तैर रही थी
आज भी वह मंजर ऑखों के सामने आता है तो रूह कॉप उठती है
देखते- देखते अपने लोग बहाव में बह गए
पानी ने न जाने कितनों को लील लिया
बिजली की रोशनी में चमचमाने वाला शहर अंधकार में घिर गया था
हमेशा चलने वाली मुंबई थम गई थी
आज भी बरसात आती है तो वह खौफनाक मंजर याद आ जाता है
आज फिर बारीश ने कहर ढाया है
मुंबई की गति को रोक दिया है
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