कुछ भी हो जाय पर मयखाने की रौनक फीकी नहीं
दिन दूना रात चौगुना के हिसाब से बढोतरी
पीनेवाले का दिल भी बडा
एक - दो को तो साथ ले ही लेगा
अकेले पीने का मजा जो नहीं है
चार मिलकर वो शमा बॉध देते हैं
कि फिर याद ही नहीं
कौन पी रहा, कौन पिला रहा
मन से बिल्कुल अमीर
जेब में जो पैसे खर्च करो
कल की मत सोचो
लडखडाते कदमों से एक- दूसरे का सहारा बने जब मयखाने से बाहर निकलते हैं
लगता है स्वर्ग के द्वार से निकल रहे है
धर्म ,जाति और अमीरी- गरीबी से परे
सब एक हो जाते हैं
समाजवाद का दर्शन यही
न रोक- टोक न कोई बनावटीपन
नशे में एकदम मन की बात बोलना
पर आज उदास है
नोटबंदी की मार उस पर भी पडी है
जो पहले साथ ढूढते थे
वह ऑख चुराकर छिप रहे हैं
अपने ही पीने के लाले पडे हैं
दूसरों को कहॉ से पीलाऊंगा
जो कुछ है उसी में काम चलाना है
पीना तो है पर अकेले
और जहॉ चार यार न हो
वहॉ क्या मजा??
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Sunday, 20 November 2016
मयखाने भी हुए उदास
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