Tuesday, 20 June 2017

मॉ तुम महान हो

बचपन में मॉ कहती थी पढने को
बहुत गुस्सा आता था
झुंझलाहट होती थी
यह क्या मेरे पीछे पडी रहती है
जब देखो तब पढ- पढ
न सोने देती है न खेलने
सुबह- सुबह नींद खराब करती है
पढ कर न जाने क्या करना हा
मुझे काम- धाम तो नहीं करना है
नौकरी तो कभी नहीं ़़़़़
ठाठ से जीना है
वक्त ने ऐसा खेल खेला कि सारे सपने हवा हो गए
ठाठ क्या गृहस्थी में पाई- पाई जोडना
ट्रेन और बस की आपाधापी
नौकरी करनी पडी मजबूरी में
हालात के चलते
आज वक्त ने उस मुकाम पर पहुंचा दिया है कि गर्व होता है
अच्छा लगता है अपनी उपलब्धियों पर.
मान- सम्मान और पैसा भी
पीछे मुडकर देखने पर हँसी आती हा
मुझे पढाने के लिए मॉ ने क्या - क्या पापड नहीं बेले
क्लास के बाहर बैठी रहती थी
गृहकार्य करती थी
सिलाई- बुनाई करती थी और मैं जाकर दिखाती
पाठशाला के लिए तैयार करना
जूते के फीते बांधना और चोटी बनाना
बडे होने पर भी काम न करने देना क्योंकि पढाई पर असर होगा
मुझ पगली को इंसान बनाया
मुझसे ज्यादा महत्तव कांक्षी
अपनी बच्ची को बडा बनाऊ
एक कम पढी- लिखी औरत जिसके सपनों की उडान इतनी बडी
मॉ तुम महान हो .

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