बचपन में मॉ कहती थी पढने को
बहुत गुस्सा आता था
झुंझलाहट होती थी
यह क्या मेरे पीछे पडी रहती है
जब देखो तब पढ- पढ
न सोने देती है न खेलने
सुबह- सुबह नींद खराब करती है
पढ कर न जाने क्या करना हा
मुझे काम- धाम तो नहीं करना है
नौकरी तो कभी नहीं ़़़़़
ठाठ से जीना है
वक्त ने ऐसा खेल खेला कि सारे सपने हवा हो गए
ठाठ क्या गृहस्थी में पाई- पाई जोडना
ट्रेन और बस की आपाधापी
नौकरी करनी पडी मजबूरी में
हालात के चलते
आज वक्त ने उस मुकाम पर पहुंचा दिया है कि गर्व होता है
अच्छा लगता है अपनी उपलब्धियों पर.
मान- सम्मान और पैसा भी
पीछे मुडकर देखने पर हँसी आती हा
मुझे पढाने के लिए मॉ ने क्या - क्या पापड नहीं बेले
क्लास के बाहर बैठी रहती थी
गृहकार्य करती थी
सिलाई- बुनाई करती थी और मैं जाकर दिखाती
पाठशाला के लिए तैयार करना
जूते के फीते बांधना और चोटी बनाना
बडे होने पर भी काम न करने देना क्योंकि पढाई पर असर होगा
मुझ पगली को इंसान बनाया
मुझसे ज्यादा महत्तव कांक्षी
अपनी बच्ची को बडा बनाऊ
एक कम पढी- लिखी औरत जिसके सपनों की उडान इतनी बडी
मॉ तुम महान हो .
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
Tuesday, 20 June 2017
मॉ तुम महान हो
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment