Tuesday, 20 June 2017

आपका प्यारा शहर

मैं तुम्हारा प्यारा शहर पर हूँ कितना परेशान
मुझे सॉस लेने में भी तकलीफ
पहले ही मेरे पास पेड- पौधे कम थे
जो बचे थे वे विकास राह में बलि चढ गए
या प्रदूषण के कारण घुट- घुटकर सॉस ले रहे
मेरे पास तो जमीन कम
लेकिन लोगों का आना अनवरत जारी
मेरा विस्तार पर विस्तार
मै कहॉ बसाउगा उनको
यहॉ पेड- पौधे नहीं कांक्रिट के जंगल का निर्माण
एक के बाद एक गगनचुंबी ईमारते
जो जगह बची वहॉ झोपडपट्टियॉ
जगह- जगह गंदगी और कूडे का ढेर
नदी की जगह गंदला नाला
समुद्र और नदी को तो पाटा ही
खुला आसमान ,बडा हरा- भरा मैदान
तारों भरी रात ,सूर्य का प्रकाश सब दुर्लभ
रात की नीरव शॉति भी नसीब नहीं
सुख की नींद तो कभी आती नहीं
रात- दिन जो चलता हूँ
रोजी- रोटी का साधन हूँ
बेरोजगारों और बेसहारों का सहारा हूँ
मैंने लोगों को अर्श से फर्श तक पहुंचाया है
बडे - बडे उद्योगपति मेरे ही गोद में पनपे और बढे
उधोगपति हो या कलाकार.
अंबानी हो या अमिताभ
सब मेरी ही बदौलत है
रंक से लेकर राजा तक
सब मेरे लिए समान
पर अब तो मुझे बख्श दो
मुझे भी सॉस लेने दो
जब तक मेरी सॉस है तब तक ही तुम सब हो
अपने प्यारे शहर और साथी पर कृपा करे

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