Saturday, 24 June 2017

निस्वार्थ कर्म हो

सूर्य रोशनी देता है
सारे जग को प्रकाशमान करता है
चंद्रमा अपनी चॉदनी से आलोकित कर शीतलता देता है
सागर स्वयं को मिटाकर वाष्प बन कर बादल निर्माण करता है
बादल बरसकर जग को तृप्त करते हैं
नदी जल बॉटती है
पेड फल - फूल ,औषधि और छाया देते है
पुष्प सुगंध देता है ,सारे जग को महकाता है
बदले में हमसे कुछ नहीं लेते
अपना कर्म नियमित रूप से करते रहते हैं
मनुष्य को भी बिना स्वार्थरहित निष्काम कर्म करते रहना चाहिए
किसी से भी अपेक्षा नहीं करनी है
चाहे वह स्वयं की संतान ही क्यों न हो
अपेक्षा न पूरी हो तो दुख के सिवाय कुछ नहीं
पशु- पक्षी भी अपने बच्चों का पालन- पोषण करते हैं
तब तक जब तक कि
जब तक अपना भोजन न जुटा ले
संतान हमें आनंद देती है
हमें जीवन से जोडती है
हमारे जीने का उद्देश्य होती है
हमने उनके लिए इतना सब किया
इसलिए
वह भी करे यह जरूरी तो नहीं
प्रेम कोई व्यापार नहीं है
कि देने के बदले लेना
किसी पर बोझ मत बनिए
स्वयं खुश रहिए और दूसरों को खुश देखकर खुश रहिए

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