एक भवननिर्माता थे
उनके यहॉ एक आर्किटेक्ट काम करता था
कर्मठ और काम की लगन
न जाने कितने ईमारतों और मकानों को बनाने नें उसकी महत्तवपूर्ण
भूमिका रही
मालिक उससे बहुत प्रसन्न थे
आखिर उसकी सेवानिवृत्ति का समय आ गया
मालिक के पास जाकर बोलने पर कि
बस एक आखिरी मकान बना दो
मालिक की ईच्छा की अवहेलना वह कैसे करता
मकान बनना शुरू हुआ
तय समय पर वह खत्म भी हुआ
वह सज्जन खुश थे कि चलो अब छूट जाऊंगा
मालिक के पास जाते हैं
हाथ पर मकान की चाभी रखते हैं और पूर्ण होने की सूचना देते हैं
मालिक प्रसन्न
पर यह क्या???
दूसरे ही क्षण मालिक चाभी उनके हाथ पर रखते हैं
और कहते हैं
कि तुमने इतने साल ,लगन और मेहनत से जो काम किया है उसका ईनाम
सज्जन आश्चर्य चकित हो जाते हैं
मन में सोचते हैं कि
अगर मुझे पहले पता होता तो
मैं इसे और अच्छा बनाता
पर अब तो कुछ नहीं हो सकता
कर्म करते रहिए
फल तो अवश्य मिलेगा
सबका दाता जो ऊपर बैठा देख रहा है
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Friday, 23 June 2017
कर्म का फल
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