Thursday, 22 June 2017

गणित - अनिवार्य न ऐच्छिक हो

याद है वह दिन
गणित के टिचर  का कक्षा में प्रवेश
डर के मारे घिग्घी बँधना
पसीने छूटना ,हाथों का कंपकपाना
पीछे की बेंच पर सर झुकाकर ,छिपाकर बैठना
गणित में दिमाग ही शून्य तो अंक की क्या बात
किसी को जीरों
तो कोई कक्षा का हीरो
सवाल छूडाते- छुडाते निकल जाता था दम
गणित होता तो शायद इस मुकाम पर हम न पहुंचते
मुंशी प्रेमचन्द जी उपन्यास सम्राट न बनते
गणित छूटा तो जीवन का मकसद पूरा हुआ
जोडना- घटाना ,भाग- गुणा करना
इससे ज्यादा क्या करना
डॉक्टर ,वैज्ञानिक और इंजीनियर बनना सबके बूते की बात नहीं
बीजगणित ,रेखागणित की क्या जरूरत
बस अंकगणित आ जाय
2+2---4  आ जाय बस
a +b ---- की सर्वसाधारण को क्या जरूरत
बुद्धिमान की तो कुछ नहीं पर
साघारण की तो गति ही रोक देता है
साहित्यकार और ईतिहासकार की तो बात ही छोड दे
मामूली क्लर्क भी बनने नहीं देता
गणित ने न जाने कितनों को फिसड्डी सिद्ध कर दिया
यह सबका मनपसन्द तो नहीं हो सकता
न सबके पल्ले पड सकता
यह अनिवार्य न हो बल्कि ऐच्छिक हो
तब न जाने कितनों की ईच्छा पूर्ण होगी
वह अपने सपनों को साकार कर पाएगे
अपने जीवन के गणित को सुधार लेगे
कला चमकेगी
कहानियॉ नए अवतार में आएगी
भाषण का गुण विकसित होगा
भविष्य का नेता तैयार होगा
केवल गणित को पकडे रहेगे तो पीछे रह जाएगे
वह ऐच्छिक रहे तो ही अच्छा है

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