एक औरत थी वह जब रोटी बनाती थी तो एक कौआ खिडकी पर आकर बैठता था और वह उसे रोटी देती थी
सालोसाल यह सिलसिला चलता रहा
कौआ आता रहा ,औरत रोटी खिलाती रही
कभी वह घर में नहीं होती तो खिडकी पर आकर कॉव- कॉव करना शुरू कर देता
घर वाले बोलते
इसकी आदत बिगाडकर रखी है न रहने पर भी कॉव- कॉव करता है
न जाने कौअे को कैसै मालूम पड जाता था कि
अब रोटी बन रही होगी
समय गुजरता रहा
बच्चे बडे हो गए
ब्याह हो गया
विदेश चले गए
वह औरत अब अकेली हो चुकी थी
उम्र भी बढ गई थी
सबको पता था कि मॉ जी अकेली रहती है
चोर - उचक्कों की नजर रहने लगी
एक दिन की बात है दो बदमाश मॉ जी के घर में पानी पीने के बहाने घुस गए
उनको बिठाकर वे पानी लाने रसोईघर में गई
पीछे- पीछे दोनों बदमाश भी
मॉ जी के गले पर चाकू रखा और तिजोरी की चाभियॉ मॉगने लगे
मॉ जी ना- नुकुर कर रही थी
इतने में कौआ आया
मॉ जी को न देखकर अंदर झॉकने लगा
बदमाशों से मॉ जी को घिरा देख चोंच मारने लगा
और कॉव- कॉव से अपने साथियों को भी बुला लिया
बदमाश इस अप्रत्ताशित आक्रमण से सकते में आ गए
और भाग खडे हुए
नेकी कभी व्यर्थ नहीं होती
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Friday, 23 June 2017
नेकी का फल जरूर मिलता है
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