Monday, 13 November 2017

मन कहता है फिर बच्चा बन जाओ

बच्चों का संसार
कितना प्यारा ,कितना न्यारा
सच्चा और भोला - भाला
छल - कपट चालाकी से दूर
मन आए तो रो लो
मन आए तो हँस लो
न दिखावा न बनावट
लडना - झगडना ,फिर एक हो जाना
मन कहता है फिर बच्चा बन जाओ
अतीत की कडवाहट
भविष्य की चिंता को गोली मारे
नींद भर सोए , जी भर खेले
गर्मी हो या ठंडी
जाडा हो या बरसात
सबका लुत्फ उठा ले
मन कहता है फिर बच्चा बन जाओ
समय बीता , बचपन छुटा
बडे और समझदार बन गए
सोचना और समझना
घर - गृहस्थी में उलझना
काम और जिम्मेदारी का भार
मन को मारना
पैसों के पीछे भागना
सब कुछ संवारते बचपन छूट गया
बचपन तो छूटा पर बचपन की यादे शायद नहीं  ???
मन कहता हे फिर बच्चा बन जाओ
बिना बात के हंसो और खिलखिलाओ
सारे मुखौटों को निकाल फेक दो
जो मन में आए वह करो
कुछ मत सोचो
कीचड उडाना हो या पतंग पकडना
रास्ते पर पैर पटकना या जोर - जोर से रोना
कहीं भी जिद करना हो या लोट जाना
पर वह तो संभव नहीं
हम जिम्मेदार जो है , बच्चे नहीं
मन का बच्चा कभी - कभी बाहर आने को आतुर
पर रोक दिया जाता है यह कहकर
   यह बच्चा है क्या
रूक तो जाता हैं ,मन मसोसकर रह जाता है
पर फडफडाता है 
मन कहता है फिर बच्चा बन जाओ .

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