बाल दिवस ,१४ नवम्बर , चाचा नेहरू का जन्मदिन
छोटे - छोटे बच्चों को देखा
कितने प्यारे - प्यारे
निरनिराले रंगों की विविध पोशाक
सजे - संवरे , प्रसन्नता से भरपूर
आज मनोरंजन होगा
उनके लिए विविध कार्यक्रम
मन अतीत के झरोखों से झांकने लगा
एक गुलाबी और परी जैसा फ्राक पहना था
उसे पहन इतरा रही थी
सबको दिखा रही थी
अचानक गिर पडी
गिरने का दुख नहीं ,फ्राक गंदा न हो जाय
झाडकर उठी
सब चिढा रहे थे
कोई जीभ दिखा रहा था तो कोई हाथ
पर मैं भी सबको अंगूठा दिखा रही थी
ठेंगा ! मुझे तो कुछ लगा ही नहीं
घर जाने पर मॉ ने पैर देखा
सूजा हुआ था
क्या हुआ बताया नहीं
डाट पडी
आज सोचकर हंसी आ गई
अरे ! मैं कहॉ बचपन में खो गई
बचपन तो कबका पीछे छूट गया
हम बच्चे नहीं बडे हो गए
वह शरारते , नादानियॉ रफूचक्कर
अब एक फ्राक नहीं सैकडों साडियॉ और ड्रेस
पर मन रीता - खाली है
क्योंकि वह तो बचपन था
जो मिला उसी में खुश हो लिए
अब बडे हो गए है
समझदारी तो आ गई पर खुशी गायब हो गई
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Monday, 13 November 2017
बचपन फिर जी उठा
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