Monday, 28 May 2018

धूप और हम

सुबह की धूप का सबको इ़ंतजार
कोमल सी धूप जब आंगन मे आती है
सब प्रसन्नता से झूम उठते हैं
नवजीवन का संचार हो जाता है
रौनक छा जाती है
अंधेरे के बाद प्रकाश का आगमन
नवचेतना ले आती है
जब यही धूप आगे बढती है
प्रखर होती जाती है
सब पर छा जाती है
सब कुछ गतिशील रहता
धीरे धीरे ढलना शुरू करती है
सब सोचते हैं कि
कैसे यह जाय
हम रात की आगोश मे शरण ले
दिन भर बहुत तप चुके
धूप की तरह ही तो
बचपन ,जवानी और बुढापा है
बचपन का स्वागत
देखभाल ,सुरक्षा ,जरूरत का ख्याल
जवानी तो कर्तव्य मे मसरुफ
अपने पूरे शबाब पर
बुढापा उम्र की ढलान पर
सब कुछ शिथिल
यहाँ तक कि शरीर भी साथ छोड़ता जाता
सब जाने का इ़ंतजार करते
नयी पौध को भी पल्लवित -पुष्पित होना है
प्रकृति का तो यही नियम है
आज हमारी तो कल तुम्हारी बारी है
कोई हमेशा नहीं रहता
समय चाल बदलता रहता
हम सोचते रहते
पर यही तो सृष्टि है

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