Friday, 27 July 2018

गुरु बिन ज्ञान नहीं

गुरु यानि शिक्षक
पर धीरे धीरे समझ
वक्त सबसे बड़ा गुरू
शुरू मे माता ,घर के सदस्य
पाठशाला मे शिक्षक
आगे जब जिंदगी बढती है
तब लगता है हर पल
कोई न कोई हमें सिखाता है
हम सीखते रहते हैं
रास्ते चलते तक
हर अनुभव
कुछ खट्टे ,मीठे ,कड़वे
पर एक एक सबक हम यही से सीखते हैं
जिंदगी बहुत बडी है
इसलिए शिक्षा भी ताउम्र चलती रहती है
किसी पडाव पर लगता है कि
हमसे तो यह छूट गया
कभी धोखा
कभी विश्वासघात
कि हम विस्मित रह जाते हैं
होशियारी धरी की धरी रह जाती है
कोई हमे ठग जाता है
फिर लगता है कि
कुछ छूट गया
आज उन सभी का आभार
जिसने जीवन की पाठशाला मे जीना सिखाया
अच्छा-बुरा ,उचित-अनुचित का भेद समझाया ।

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