Wednesday, 19 September 2018

बिनब्याही मां

मैं आज की नारी हूँ
मेरा. कर्म मेरा है
उसका जिम्मेदार कोई और नहीं
मेरा गर्भ भी मेरा ही है
उसमें पल रहा बच्चा भी मेरा ही है
समाज और लोगों के डर से मै इसे नष्ट करू
क्यों ,क्या कर लेगा
यह तथाकथित समाज
मैं महारानी कुंती नहीं हूँ
जो अपने बेटे को पहचानने से इंकार कर दे
मैं पृथा नहीं जो नवजात को नदी मे बहा दू
मैं राजकुमारी नहीं हूँ
सामान्य नारी हूँ
अपने पैरों पर खडी हूँ
मैं किसी की हत्या की अपराधी क्यों बनू
एक नये जीव को दूनिया मे लाना है
उसे जीवन से परिचय करवाना है
मृत्यु से नहीं
पिता का नाम नहीं है
कोई बात नहीं
मै कायर मर्द नहीं
सबला नारी. हूँ
अपनी संतान से मुंह कैसे फेरू
जब जानवर से प्यार किया जा सकता है
उनकी देखभाल की जा सकती है
तो अपने कलेजे के टूकडे की क्यों नहीं
यह महाभारत का युग नहीं है
नये नवनिर्माण का युग है
और मैं इस युग की हूँ
शर्मिंदा नहीं हूँ
जिम्मेदार हूँ
जिम्मेदारी से भागना नहीं है
मुंह नहीं छिपाना है
मैं कोई अपराध नहीं कर रही हूं
नये जीवन को ला रही हूं
किसी को जिंदगी दे रही हूं

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