जख्म बहुत गहरा था
उपचार करते कितना समय बीत गया
अच्छा भी हो चला था
पर फिर उसको कुरेद देती
सूखता हुआ घाव फिर हरा हो जाता
पर क्या करती
आदत से मजबूर
थोड़ी भी कुलबुलाहट सहन नहीं
यह भी डर कि कही गेंग्रीन न हो जाय
यह तो छोटा सा शारीरक घाव है
पता नहीं मन कितना घायल है
हम उस घाव को लेकर बरसों ढोते रहते हैं
समय समय पर याद करते रहते हैं
जीवन की मुस्कान गायब कर डालते हैं
यही सोचकर
हमारे साथ ऐसा हुआ
फलाने ने ऐसा किया या कहा
फलाना ढिमाके को तो कुछ याद नहीं
वह तो बोलकर भूल गया
पर हम नहीं भूले
अपनी जिंदगी झंड बना रखी
ऐसे जीवन मे हर वक्त होता है
कभी कभी जखमों को ढोते
मानसिक रोगी बन जाते हैं
जबकि जख्म देने वाले को भूल जाना चाहिए
चाहे वह अपने हो या बेगाने
हमारी जिंदगी हमारी है
सोच भी हमारी है
उस पर किसी को हावी नहीं होने देना है
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Sunday, 28 October 2018
जख्म
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