वह पन्द्रह पैसे
आज पन्द्रह हजार को मात करता
उसमें समोसा ,जलेबी और आइसक्रीम
छक कर खाते
कुछ कपडों पर गिराते
जो निशानी छोड़ जाते
मां को.चटखारे लेकर बताते
कहाँ से लिया
किसके साथ खाए
कितनी मजा की
मां का जीभर आभार मानते
आज बच्चों को कितना भी दो
उनका मुंह बिगड़ा हुआ ही रहता है
मंहगाई बढ़ गई
या समय बदल गया
वह संतोष नहीं
जो हमारे समय मे था
पैसा कितना भी मिल जाय
सुख सुविधा कितनी भी मिल जाए
पर मन को खुश रहना नहीं आता
वो टाँफी ही काफी थी
केडबरी उसके सामने फीकी है
क्योंकि अब इच्छाए
बढ जो गई
तब कम मे जीते थे
जी खोलकर हंसते थे
मनसोक्त हंगामा करते
रात को बिना बिस्तर के ही सो जाते
नींद के धनी थे
चिंता से दूर
बस जीवन को जीभर जीते थे
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Thursday, 22 November 2018
सच जमाना बदल गया
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