यह सरसो है
छोटे दानों वाली
हार नहीं मानने वाली
पत्थर पर ऊग आई
हरी भरी लहरा रही
मुस्कान भी बिखेर रही
पीले पीले पुष्पों के साथ झूम रही
हवा संग बतिया रही
अकेली है
फिर भी मदमस्त खड़ी है
इसे परवाह भी नहीं
किसकी नजर पड़े
कौन उखाड़ ले
निडर है
उसे पता है
उखाड़ लेगे तो साग बनाएंगे
अगर छोड़ देंगे
तो फिर इसकी फलियों को धूप मे सुखाएंगे
फिर डंडे से पीटेंगे
और फिर यह तेल मे डालकर छौंक लगा दी जाएगी
यानि उसको तो जलना ही है
कड़ाही या और बर्तन में
पर मायूस नहीं है
नियति के आगे हारी भी नहीं है
पत्थर मे भी अकेले उग आई है
लोगों को भा भी रही है
अकेले ही अपने असतित्व को साबित भी कर रही है
पीली पीली सरसो
महकी महकी सरसो
हरी भरी ,मन भरी भरी
गाती -झूमती है
रानी अपने मन की
नजर उतारी जाती जिससे
उसे
नजर न लगे किसी की
No comments:
Post a Comment