जूता सबसे उपेक्षित
घर की जूती है यह तो सबसे प्रचलित मुहावरा
दरवाजे के किसी कोने मे इसकी जगह
इसका महत्व सबसे अंत
कभी सोचा है यह उपेक्षित
हमारे पूरे शरीर का भार उठाता है
होता है हल्का पर रहता मजबूती से
यह हमें बहुत कुछ सिखाता है
कंकड़ आ जाय तो यह सहन नहीं करता
उसको निकाल कर ही दम लेता है
अनचाहा को बर्दाश्त नहीं करना है
नया होता है तो काटता है
धीरे धीरे अभयस्त हो जाता है
यानि नये को स्वीकार करना है
चाहे वह टेक्नोलॉजी हो या रिवाज
हमेशा जोड़ी मे रहता है
एक न रहे तो दूसरा बेकार
यानि जीवन में अकेले नहीं
साथ चलने मे सार्थकता है
एक आगे तो दूसरा पीछे
फिर भी द्वेष नहीं
सहयोग की भावना
हमेशा इसको पालिश और सफाई की जरुरत
नहीं तो गंदा और बदबूदार
जीवन की कुछ सड़ियल बातों को छोड़ना है
हर वक्त समय के अनुसार चलना है
कड़ी धूप ,कड़कती ठंडी
कीचड भरी बरसात
हर मौसम का सामना
यही तो हमें भी करना है
हर परिस्थिति का सामना करना है
घबराना कतई नहीं है
यह कम कीमत में भी उपलब्ध
मंहगे से मंहगा भी
अमीर गरीब
जाति धर्म
प्रांत देश
सुंदर या साधारण
सबकी आवश्यकता
कोई भेदभाव नहीं
है तो यह जूता
पर संदेश देता बड़ा
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