Friday, 18 January 2019

हवा

यह हवा है मचलती ,थिरकती
नाचती ,गाती ,मस्ती फैलाती
गली - गली , गाँव - गाँव
जमीन से आसमां तक
इसका ही साम्राज्य
महसूस होती
है हल्की
पर है तो शक्तिशाली
इसके सामने तो हर कोई बौना
रूद्र रूप धारण जब करती
तब नहीं कोई टिक पाता
बड़़े.बड़ों को उखाड़ फेकती
धूप हो या छांव
बारिश हो या बदरी
गर्मी हो या उमस
ठंडी हो या कोहरा
विचलित नहीं होती
सब पर रहम करती
खुशियों का संदेश देती
खुशबू फैलाती
जीवन देती
दृष्टिगत नहीं होती
जबकि सबमें है समायी
यह सांस है
हर जीव की आस है
जीवन की डोर इससे बंधी हुई है
यह नहीं तो कोई नहीं
सारा जग निर्जीव
यही तो बनाती है जग सजीव
यह हवा है हवा
इसी से तो जग है।

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