Tuesday, 19 February 2019

जीवन को भी तो जीना है

फूलों की खुशबू को महसूस करना है
पत्तों की नीरवता की तरह रहना है
नदी की कलकलाहट जिंदगी मे भरना है
चंद्रमा की चांदनी की तरह जगमगाना है
सूर्य की ताजगी की तरह जीना है
समुंदर की लहरों की तरह उफान भरना है
तारों की तरह झिलमिलाना है
भौरे की तरह गुंजायमान होना है
तितली की तरह हर फूल पर मंडराना है
मौसम तो बदलता रहेगा
आंधी तूफान के थपेड़े भी झेलने पड़ेंगे
कभी भूंकप के झटके भी आंएगे
सब कुछ एक समान तो नहीं चलेगा
गिर कर उठना तो पडे़गा ही
यह सब तो आकर चले जाएंगे
पर हम क्यों उनकी याद मे बिसूरते रहे
जब प्रकृति भी यह सब याद नहीं रखती
न पतझड़ न भूंकप न विनाश
तब हम क्यों यह सब याद रखें
जब है जो है जैसा है
जीवन को उसी रूप मे स्वीकार करना है

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