Wednesday, 1 May 2019

वह माँ है

वह रोज आती है भागती -दौड़ती
साड़ी ऊपर कुछ खोस कर
लग जाती काम पर
बरतन धोती ,कपड़ें धोती
हाथ चलते मशीन से
झाड़ू उठा घर बुहार चल देती
अगले घर की घंटी बजाने
बुहारते -साफ करते भरी दोपहरी मे निकल पड़ती
थैले मे कुछ बचे -खुचे खाने
पेट भूख से कुलबुला रहा
पर पेट मे नहीं डाला
घर पर बच्चे इंतजार में
माँ आएगी पकवान लाएगी
दूसरे की जूठन, छोड़े हुए खाने
उनके लिए तो लजीज
ऐसा खाना तो देखने को भी तरसे
बाप पी कर धूत पडा है
बच्चों की आस तो वह ही है
उनका पेट भर जाय
वह प्रसन्न  होकर उछाल मारे
उसकी भूख शांत हो गई
थकान गायब हो गई
माँ की ममता उमड रही
गोदी निहाल हो गई
अपने नौनिहालो को निहारती वह धन्य हो गई

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