Sunday, 23 June 2019

वहीं दिन अच्छे थे

घर में सोफे पर पूरा दिन लेटने से अच्छा
स्टाफ रूम की कुर्सी पर बैठना
शांति से पांच मिनट भी न बैठ पाना
घंटी का टनाटन बजना
भागते दौडते क्लासरूम में जाना
वह कहीं बेहतर था

पूरा दिन नीरव शांति से अच्छा
वह छात्रों की बडबड
उनकी बातचीत
उनको डाटना
लेक्चर देना
गुस्सा उतारना
पढाते पढाते मुंह दर्द होना
वह इस चुप्पी से कहीं बेहतर था

सहकर्मियों से बातचीत
नोकझोंक ,वाद-विवाद
हर बात में भागीदारी
काम का बोझ
करेक्शन की चिंता
पोर्शन कम्पलीट करने की मारामारी
वह इस अकेलेपन से बेहतर था

तब वक्त नहीं था
न अपने लिए
न परिवार के लिए
आज वक्त ही वक्त
पर वह बिजीपन कहीं इस खालीपन से बेहतर था

सब कुछ भूल जाना
पाठशाला की दहलीज पर पैर रखते ही
दुख दर्द ,चिंता तनाव
बच्चों के साथ समय बिता
आज समय ही समय
भूतकाल को याद करने का
इससे बेहतर समय का अभाव था

जीवन सार्थक तो था
आज रिटायरमेंट हो गया है
पर जीवन थम सा गया है
लगता है कि
वही है
जहाँ हम उसे छोड़ आए थे
वह पाठशाला का गेट
वह सहकर्मी
वह छात्र
वह किताबें

No comments:

Post a Comment