Wednesday, 19 June 2019

तालाब सिसक रहा है

तालाब सिसक रहा है
उसे पाट दिया गया
न जाने कितनी सदियों तक लोगों की प्यास बुझाई
विकास के मत्थे वह भी चढ गया
उस पर इमारत खड़ी हो गई है
उसे पाट दिया गया

कितना गुलजार रहता था
उसके किनारे लोग आकर बैठते थे
बच्चे कूदते थे
तैरते थे
उधम मचाये थे
औरते कपडे धोती
मवेशी पानी पीते
घंटों इसमें खडे रहते
सबको गर्मी से निजात मिलती

आज मुझे तो पाट दिया
साथ में किनारे खड़े पेडो को भी काट दिया
पीपल ,आम ,बबूल ,नीम को भी
जो हवा देते थे
छाया देते थे

क्या हो गया है इस मानव जाति को
अपनी ही जडे काटने में लगा हुआ है
मैं अदना सा तालाब
यह बुद्धिमान प्राणी
मेरी औकात ही क्या
बस सिसक रहा हूँ
इमारत के नीचे दबा पडा हूँ .

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