Wednesday, 17 July 2019

जीने का अधिकार

बेटी आई है ससुराल से
जहाँ उसे भेजा था
आॅख भर आई थी
अपने जिगर के टुकड़े को सौंपते हुए
वह लौट आई है वहाँ से
जहाँ से उसे आना नहीं चाहिए था

मायके से डोली
ससुराल से अर्थी
यह बदलना है
उसे प्यार और आदर से अपनाना है
अपने जिगर के टुकड़े को कसाई के चंगुल से छुडाना है

वह वस्तु नहीं है
लोग क्या कहेंगे
यह सोचने से अच्छा तो बेटी का आधार बनना है
डटकर हर हाल में उसके साथ रहना है
लोगों का क्या है
वह तो तब भी कहेंगे
अब भी कहेंगे
उसे मुर्दा मत बनाइये
जीवंत इंसान है वह
उसे पूरा अधिकार है
अपनी जिंदगी जीने का
किसी का गुलाम बनना नहीं

वह आज की पीढी है
पढी लिखी आत्मनिर्भर है
तब सोच भी आज की रखना है
पुराना जमाने की बाते छोड़ना है
तहे दिल से स्वागत करना है
ईश्वर का शुक्रिया अदा करना है
वह जीवित आई है
उसकी अर्थी नहीं
इससे ज्यादा आपको क्या चाहिए

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