Monday, 28 October 2019

दीए की भांति जीवन

कल बहुत से दीए एक साथ जलाए
कुछ खूब रोशनी बिखेर रहे थे
कुछ कम जल रहे थे
कुछ बीच में बुझ गए
उनको फिर जलाना पडा
सभी में तेल और बाती तो समान था
तब भी यह हुआ
दीए को हमने भी छोड़ा नहीं
फिर जलाया
जो कम जल रहे थे
उनकी बाती को आगे पीछे करना पडा
ताकि वह अच्छी तरह से जले
हवा का रूख भी भांप कर
उसे जलाने की कोशिश की
यह भी पता है
कल यह सब कूडे के ढेर में चले जाएंगे
फिर भी प्रयत्न जारी है
प्रकाश तो करना ही है
अंधेरे को कैसे रहने दिया जाए
मिट्टी के दीप को भी हम
धोकर ,रंगकर पात में सजाते हैं
हर कोने कोने में रखते हैं
यह भी जब तक जलता है
प्रकाश देता है
बिना परवाह के
कल इसका  हश्र क्या होगा
तब इस अमूल्य जीवन रूपी सौगात को
व्यर्थ क्यों करें
जो भी है
जैसा भी है
उसको व्यर्थ क्यों करें
जो कुछ कर सकते हैं
जहाँ भी अपना योगदान दे सकते हैं
अवश्य दे

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