कल बहुत से दीए एक साथ जलाए
कुछ खूब रोशनी बिखेर रहे थे
कुछ कम जल रहे थे
कुछ बीच में बुझ गए
उनको फिर जलाना पडा
सभी में तेल और बाती तो समान था
तब भी यह हुआ
दीए को हमने भी छोड़ा नहीं
फिर जलाया
जो कम जल रहे थे
उनकी बाती को आगे पीछे करना पडा
ताकि वह अच्छी तरह से जले
हवा का रूख भी भांप कर
उसे जलाने की कोशिश की
यह भी पता है
कल यह सब कूडे के ढेर में चले जाएंगे
फिर भी प्रयत्न जारी है
प्रकाश तो करना ही है
अंधेरे को कैसे रहने दिया जाए
मिट्टी के दीप को भी हम
धोकर ,रंगकर पात में सजाते हैं
हर कोने कोने में रखते हैं
यह भी जब तक जलता है
प्रकाश देता है
बिना परवाह के
कल इसका हश्र क्या होगा
तब इस अमूल्य जीवन रूपी सौगात को
व्यर्थ क्यों करें
जो भी है
जैसा भी है
उसको व्यर्थ क्यों करें
जो कुछ कर सकते हैं
जहाँ भी अपना योगदान दे सकते हैं
अवश्य दे
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Monday, 28 October 2019
दीए की भांति जीवन
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