वे कहकहे लगा रहे थे
साथ में बहुत कुछ कह रहे थे
कहना केवल मुख से हो
यह जरूरी तो नहीं
अंदाज भी बहुत कुछ बयां कर जाते हैं
भावनाओं के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती
नजर ही काफी होती है
जो कह नहीं पा रहे थे
वह कहकहा कह रहा था
मन में कुछ तो हलचल थी
जो बाहर इस तरह से आ रही थी
कहकहा लगा जा रहा था
रूकने का नाम नहीं ले रहे थे
कहना पडा
अरे बस भी करो
पेट में दर्द हो जाएगा
रूक गए
देखा तो ऑखों में पानी था
वह शायद जोर से हंसने पर
यह स्वाभाविक है
पर ऑखों में पानी की क्या यही वजह
वह तो वे ही जाने
पर हम जान गए थे
यह कहकहा नहीं था
छटपटाहट थी
मजबूरी और बेबसी थी
जो इस रूप में व्यक्त हो रही थी
सच ही कहा है किसी शायर ने
जो जितना गहरा घाव लिए बैठा दिल में
वह आहे भरते उतना ही सकुचाता है
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Monday, 25 November 2019
यह कहकहा नहीं
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