आज सब कुछ धरा का धरा रह गया
वह दोस्त वह मित्र वह रिश्तेदार
वह सोसायटी वह दोस्ती
जिसकी खातिर हम करते थे
अपनों को नजरअंदाज
वह होटल वह रिसोर्ट
जिसके कारण घर था सराय
वह पिज्जा और बर्गर
जब हम अपनी रोटी को रहे थे भूल
घर का खाना था बेस्वाद
आज कठिन बेला में लगता है सब प्यारा
करोना ने जता दिया
अपने तो अपने ही होते हैं
घर तो घर ही होता है
रोटी तो रोटी ही होती है
यह सब ही है मुसीबत के संगी
इनका मत करो तिरस्कार
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Sunday, 29 March 2020
इनका मत करो तिरस्कार
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