आज जिंदगी कितनी बेचारी हो गई है
एक छींक और खांसी पर अटक गई है
पहले छींक आ जाती थी
तब इतनी परेशानी नहीं होती थी
कभी-कभी तो आवाज सुनकर ही लोग हंस देते थे
आज तो सब चौकन्ना हो देखते हैं
जैसे छींक न हुई कोई बडी भारी गलती हो गई
खांसना तो और भी दुभर
गले में खराश हो
खांसी आ जाय
तब कहते थे
पानी पी लो
कुछ तो बोतल भी दे देते थे
आज अगर खांसा तो फंसा
सब हट जाएंगे
पता नहीं क्या है
मुख पर मास्क तो लगा है
सांस तो ले रहे हैं
साथ में संभल भी रहे हैं
सतर्क है
कहीं छींक न आ जाए
कहीं खांसी न आ जाए
नहीं तो लोग किनारा कर लेंगे
संदिग्ध दृष्टि से देखने लगेंगे
जबकि यह सब तो प्राकृतिक है
इन पर लगाम तो नहीं लगाई जा सकती
लगाना भी नहीं चाहिए
पर अब तो डर है
लगता है
आज जिंदगी कितनी बेचारी हो गई है
एक छींक और खांसी पर अटक गई है
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Thursday, 14 May 2020
आज जिंदगी कितनी बेचारी हो गई है
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