Monday, 18 May 2020

हम मिडिल क्लास

आज जिंदगी समझ आई है
हम जो रोज मारामारी करते हैं
वह महामारी से घबराई है
क्या क्या जुगाड़
सब बरबाद

जान बचाना
वह बचा
तब रोटी जुटाना
उसके लिए रोजी का जुगाड़
सब जरिया है खत्म
जोड़ कर जो रखा
दो महीनों में सब गए उड
अब तो विचारों की उडान पर है लगाम
रात दिन इस बात की चिंता
भोजन कहाँ से
किराया कहाँ से
कर्जे की किश्त कहाँ से
बच्चों की फीस कहाँ से
एज्युकेशन लोन का भुगतान कैसे
बिजली और टेलीफोन का बिल कहाँ से
हर मध्यम वर्ग की है यह समस्या
लगता है तब गरीब ही भले
उनकी सुध तो कोई ले रहा
हमारी सुध तो कोई नहीं
न सरकार न संस्था
हम अपने को शिक्षित समझते थे
मार्डन समझते थे
अग्रणी विचारधारा के समझते थे
समाज की बुनियाद समझते थे
आज हमारी ही बुनियाद हिली हुई है
दिमाग चकरा रहा है
सब गडबडझाला हो रहा है
सारे सपने धराशायी
हम तो इस मोड़ पर खडे हैं हमेशा से
न आगे न पीछे
बस बीच में
चक्की की तरह पीस रहे हैं
हमारी व्यथा को कौन समझेगा
हम तो मध्यम वर्ग वाले हैं
जमीन पर धडाम से गिरे है
आवाज भी नहीं
बस पीडा को मन में दबाए
हम समाज चलाने वाले जो है
समाज के नुमाइंदा जो है
तब अपनी गरीबी की
अपनी मजबूरी की नुमाईश कैसे करें
आज जिंदगी समझ आई है
हम जो रोज मारामारी करते हैं
वह महामारी से घबराई है

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