आज जिंदगी समझ आई है
हम जो रोज मारामारी करते हैं
वह महामारी से घबराई है
क्या क्या जुगाड़
सब बरबाद
जान बचाना
वह बचा
तब रोटी जुटाना
उसके लिए रोजी का जुगाड़
सब जरिया है खत्म
जोड़ कर जो रखा
दो महीनों में सब गए उड
अब तो विचारों की उडान पर है लगाम
रात दिन इस बात की चिंता
भोजन कहाँ से
किराया कहाँ से
कर्जे की किश्त कहाँ से
बच्चों की फीस कहाँ से
एज्युकेशन लोन का भुगतान कैसे
बिजली और टेलीफोन का बिल कहाँ से
हर मध्यम वर्ग की है यह समस्या
लगता है तब गरीब ही भले
उनकी सुध तो कोई ले रहा
हमारी सुध तो कोई नहीं
न सरकार न संस्था
हम अपने को शिक्षित समझते थे
मार्डन समझते थे
अग्रणी विचारधारा के समझते थे
समाज की बुनियाद समझते थे
आज हमारी ही बुनियाद हिली हुई है
दिमाग चकरा रहा है
सब गडबडझाला हो रहा है
सारे सपने धराशायी
हम तो इस मोड़ पर खडे हैं हमेशा से
न आगे न पीछे
बस बीच में
चक्की की तरह पीस रहे हैं
हमारी व्यथा को कौन समझेगा
हम तो मध्यम वर्ग वाले हैं
जमीन पर धडाम से गिरे है
आवाज भी नहीं
बस पीडा को मन में दबाए
हम समाज चलाने वाले जो है
समाज के नुमाइंदा जो है
तब अपनी गरीबी की
अपनी मजबूरी की नुमाईश कैसे करें
आज जिंदगी समझ आई है
हम जो रोज मारामारी करते हैं
वह महामारी से घबराई है
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