Monday, 25 May 2020

तब मैं कैसे रहूँ खुशहाल

आसमां से चांद भी देखता होगा धरती का हाल
आज यह क्या हो रहा है
क्यों फिजा उखड़ी उखड़ी सी है
शमा उजड़ी उजड़ी सी है
तल्खी बिखरी हुई सी है
लोग मेरा दीदार करना भी भूल रहे
आज मेरी चांदनी भी सहमी-सहमी सी है
धरती का हाल देख कुछ उदास सी है
तारे भी गमगीन से है
मेरी खूबसूरती कही छुप सी गई है
आज किसी को कुछ नहीं सूझता
सब मायूस और परेशान
आज कोई नजारा नहीं देख रहा
कोई कैमरे में कैद नहीं कर रहा
न जाने कितने चल रहे
न जाने कितने सडक पर सो रहे
इतना बडा आसमान
वह भी है मजबूर
बेबसी का दीदार कर रहा
मैं तो रात भर आवारगी करता हूँ
यहाँ से वहाँ घूमता हूँ
एक जगह तो ठहरता नहीं हूँ
ऑख मिचौली करता हूँ
तारों के साथ खिलखिलाता हूँ
पर यह दृश्य देख मन नहीं करता
पूरे विश्व के यही हालात
चांद पर पहुँचने वाले
धरती पर ही पैर नहीं टिक पा रहे
अब तो देखा नहीं जाता
मन करता है
यही ठहर जाऊं
कुछ तो मरहम लगाऊ
और कुछ तो नहीं
अपनी रोशनी ही फैलाऊ
शीतलता से नहलाऊ
धरती जब बेहाल
तब मैं कैसे रहूँ खुशहाल

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