Tuesday, 26 May 2020

बस सरकार के भरोसे है

पैर में छाले
पेट में भूख
बेघर
चल रहे
चलते जा रहे
कोई दया कर दे रहा
कुछ खाने को दे दे रहा
कोई पानी और बिस्कुट
कोई पुलाव और दाल चावल
कोई रूपया
कोई चप्पल
आज हम मोहताज हो गए
दर दर के भिखारी हो गए
कभी हम भी खाते कमाते थे
अपनी मेहनत के बल पर जीते थे
हाथ फैलाना हमें गंवारा नहीं
भिखारी और साधु फकीर को खाली हाथ नहीं लौटाते थे
पेट भर खाते थे
पूरे परिवार को खिलाते थे
अपनों पर कोई कष्ट न आने देते थे
आज इतनी लाचारी
सब देख रहे
कुछ कर न पा रहे
बस सरकार के भरोसे हैं

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