Saturday, 13 June 2020

कर्ण की अभागी माँ कुंती

कर्ण जैसा पुत्र
यह तो किसी भी नारी के लिए गर्व की बात
महावीर , महादानी कर्ण की माँ
पर भाग्य की विडंबना देखिए
वह कभी किसी को बता ही नहीं सकी
इस समाज के डर से
कुंवारी माता के गर्भ से जन्मा बच्चा
कलंक और माता कलंकिनी
इसी उपाधि से नवाजा जाता है
हस्तिनापुर की कुलवधू
यह कैसे बताती
स्वयं कर्ण को भी तब तक नहीं बताया
जब तक कि उनके पुत्रो पर नहीं बन आई
ऐसा नहीं कि कर्ण से प्यार नहीं था
कर्ण उनके जेष्ठ पुत्र थे
उस पुत्र के लिए दिल हमेशा तडपता रहा
जिसे उन्होंने त्याग दिया था
पांडवों की जीत हुई
पर उनकी ऑखों में पानी ही रहा
वह जीवन भर उस पुत्र के लिए तडपती रही
जिसे चाह कर भी अपना न पाई
अपना न बता पाई
वह भरी सभा में अपमानित होता रहा
कुंती मुकदर्शक बनी रही
वह कर्ण की माॅ से ज्यादा
हस्तिनापुर की कुलवधू और महारानी थी
मर्यादा आडे आ  रही थी
जब तैयार भी हुई
तो उसी बेटे ने मना कर दिया
कहीं न कहीं माँ की मजबूरी समझ रहा था
तभी अपने भाईयो को बख्श दिया
कितनी अभागी माँ
जो अपने बेटे को बेटा न कह पाई
उसे गले न लगा सकी
कुंती भोज की बेटी
महाराज पांडु की पत्नी
हस्तिनापुर की कुलवधू
देवव्रत भीष्म की पुत्रवधु
पांच महारथी पांडवों की माता
वासुदेव कृष्ण की बुआ पृथा
अपने उस बेटे से पृथक क्या हुई
सारा सूनापन समेट लिया
कर्ण को अपने से अलग कर
हर खुशी को अलविदा कह दिया था
तभी तो वासुदेव से दुख का वरदान मांगा था

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