Saturday, 13 June 2020

जेल में कैद औरत

यह समाज
इसके खोखले नियम और कानून
इसका दंड भी नारी को भुगतना
सदियों से यही चला आ रहा
आज भी सीता का हरण होता है
आज भी अग्नि परीक्षा देनी पडती है
बिना किसी गलती के परित्याग किया जाता है
एकल माँ बन कर संतान का पालन करना पडता है
आज भी किसी गांधारी को ऑखों पर पट्टी बांधनी पडती हैं
आज भी कोई अंबा अपमान की आग में जलकर भटक रही है
आज भी किसी द्रोपदी का भरी सभा में चीर हरण होता है
लोग तमाशाई बने रहते हैं
आज भी किसी अहिल्या और तुलसी से छल किया जाता है
रामायण और महाभारत की कहानी नहीं यह
हर युग में यही होता आया है
दोषी हमेशा औरत ही
दंड भुगतना उसी को
इसी मे कोई कमी होगी
इसका कैरेक्टर ऐसा होगा
बिन जाने समझे
बस तोहमत लग गया
कभी कपडे को लेकर
कभी आने जाने को लेकर
देखा जाय तो समाज एक जेल है
उसके नियमों में औरत कैद है

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