Saturday, 13 June 2020

वह बचपन प्यारा बचपन

वह खट्टी मीठी गोली थी
लाल पीली नारंगी
मुंह में जब डालते
तब चेहरा रंग बदलता
वह पांच पैसे की पेप्सी थी
जब तक बर्फ खतम न हो जाय
चूस चूस कर खाते थे
प्लास्टिक को भी चबा डालते थे
वह क्रीम वाला चीनी लगा बिस्कुट
चाट चाट कर खाते थे
चाशनी भर घूमते थे
पानी भी नहीं पीते थे
वह रंगबिरंगा रबर
काॅपी में रगड रगड कर मिटाते थे
सभी को ललचाते थे
वह चार आने का बडा
सी सी कर खाते थे
घरवालों को नहीं बताते थे
बहुत खा लिया
बटर टोस्ट , पिज्जा और बर्गर
पर पहले वाला स्वाद
कहाँ भूला है
अभी भी जिह्वा पर कायम है
वह बचपन था
भले बडे हो जाय
बचपना तो कायम रहता है

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