वह खट्टी मीठी गोली थी
लाल पीली नारंगी
मुंह में जब डालते
तब चेहरा रंग बदलता
वह पांच पैसे की पेप्सी थी
जब तक बर्फ खतम न हो जाय
चूस चूस कर खाते थे
प्लास्टिक को भी चबा डालते थे
वह क्रीम वाला चीनी लगा बिस्कुट
चाट चाट कर खाते थे
चाशनी भर घूमते थे
पानी भी नहीं पीते थे
वह रंगबिरंगा रबर
काॅपी में रगड रगड कर मिटाते थे
सभी को ललचाते थे
वह चार आने का बडा
सी सी कर खाते थे
घरवालों को नहीं बताते थे
बहुत खा लिया
बटर टोस्ट , पिज्जा और बर्गर
पर पहले वाला स्वाद
कहाँ भूला है
अभी भी जिह्वा पर कायम है
वह बचपन था
भले बडे हो जाय
बचपना तो कायम रहता है
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Saturday, 13 June 2020
वह बचपन प्यारा बचपन
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