Monday, 22 June 2020

वाह रे बडा पाव

जहाँ जहाँ मैं
वहाँ वहाँ लोग
ठेले पर दुकान में
हर गली मोहल्ले में
स्कूल में काॅलेज में
ऑफिस की कैंटीन में
बाजार में चौराहा पर
रेलगाडी में सिग्नल पर
नहीं किसी की जेब पर भारी
सबका पेट भरना मेरी जिम्मेदारी
बच्चों की भी पसंद
युवा की पसंद
बुजुर्गों की भी पसंद
नहीं समय है
कोई बात नहीं
कहीं भी खा लो
सडक पर खडे हो
या चलते चलते
बस कागज में बंधा लो
अमीर गरीब सभी
खाते हैं चाव से
सस्ते में मिल जाता हूँ
पर पेट भर देता हूँ
चाय की दुकान की रौनक
टैक्सी वाले
बस ड्राइवर और कंडक्टर
मुलाक़ात करते मुझसे सुबह शाम
बाढ और बरसात में फंसने पर
भूख लगने पर मेरी ही याद
जम कर पेट में रहता हूँ
देर तक भूख को रोके रखता हूँ
खाना न मिले तब भी
कितनों का चल जाता काम
नाश्ता या खाना
सबका काम चला लेता हूँ
चटनी और पाव में डाल
जब चटखारे लेकर खाते सब
कोई धीरे धीरे
कोई जल्दी में
तब मैं मन ही मन खुश हो जाता
अपनी पीठ आप थपथपाता
कहता वाह रे कमाल का
तू बडा पाव

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