Monday, 22 June 2020

दे दान छूटे ग्रहण

छोटे थे बच्चे थे
जब ग्रहण लगता था
तब कुछ नियमों को मन से माना जाता था
उपवास से लेकर स्नान ध्यान तक
बूढ़े बुजुर्ग उदास हो जाते थे
आज हमारे भगवान पर ग्रहण लगा है
उनको मुक्त होने के लिए यह सब करना है
फिर अमृत मंथन कैसे हुआ
चंद्र और सूर्य ने क्या किया
राहु और केतु ने क्या किया
विस्तार से वर्णन
फिर डोम आते थे मांगने
चिल्ला कर
दे दान छूटे ग्रहण
तब यथाशक्ति लोग कपड़े इत्यादि का दान देते थे
सब अपने घर की छतों या गैलरी में खडे रहते थे
देखने के लिए भी
देने के लिए भी
आज कितना बदल गया है
ठीक है
कुछ नहीं करना है तो सोते रहेंगे पूरा दिन
अंधविश्वास है यह
पर उस अंधविश्वास में भी एक विश्वास था
हम अपने प्रभु की मदद कर रहे हैं
श्रद्धा के साथ मदद का
वह भी उसकी जो ईश्वर है
तब इंसान की मदद कैसे नहीं करते
आज यह भावना लुप्त
समष्टिवाद से व्यक्तिवाद
कितना बडा संदेश था वहाँ
जब देने वाला और लेने वाला दोनों हाजिर
आज भी कानों में गूंजती है वह आवाज
दे दान छूटे ग्रहण

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