वाहहह पारले जी
बहुत बिस्किट आए
नए-नए कलेवर में आए
मनलुभावन विज्ञापन के साथ आए
आज की पीढ़ी के सामने बहुत विकल्प
हमारी पीढ़ी के सामने बस एक ही विकल्प
एक ही च्वाइस
एक ही ब्रांड
वह था ग्लुकोज बिस्किट
याने पारले जी
यह ब्रांड मंदी में जा रहा था
बाजार की चकाचौंध में खो रहा था
अचानक आज फिर आगे है
सभी को पछाड़ दिया है
मुनाफे के मामले में
मराठी में कहावत है
स्वस्त आणि मस्त
हम तो पारले को भूले ही नहीं
चाय में डुबो कर खाना
नहीं तो पानी में ही सही
आज मजदूर से लेकर सब घर में मौजूद
सहारा तो बना है
विश्वास भी है
कि ऐसा वैसा या लोकल कंपनी का नहीं है
इसकी सुगंध ही अलग
जब गोरेगाव से लोकल गुजरती है
तब रेल भी महक उठती है
जान जाते हैं
कौन सा स्टेशन है
ऑख बंद कर भी नाक से सूंघ कर पता चल जाता है
अरे यह तो ग्लुकोज बिस्किट है
पारले जी है
यह किसी पहचान का मोहताज नहीं
जिसने इसे एक बार खाया
वह हमेशा खाना चाहेगा
कितने भी टाइगर आए
सब इसके सामने
चारों खाने चित्त
दादा - दादी , नाना - नानी
चाची , बुआ , ताई
भतीजा , भतीजी
पोता - पोती , नाति - नत्कुर
नहीं कोई करें नुकुर
सबकी पसंद
सबका प्यारा
पारले जी हमारा
तभी तो कह सकते हैं
वाहहह पारले जी
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Sunday, 14 June 2020
वाहहह पारले जी
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