Sunday, 5 July 2020

सूनी सूनी गलियां

वह जिस्म बेचती थी
तन की भूख नहीं
पेट की भूख मिटाने वास्ते
बच्चों का पालन-पोषण करने वास्ते
उसे अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता
ऐसे ही उसके जैसे न जाने कितने
आज सबकी हालत बेहद खराब
करोना है
तब ग्राहक नहीं आ रहे
दूरी बना कर रखनी है
सबको जान की परवाह है
ग्राहकों को भी
उनको भी
पर पेट का क्या करें
वह तो भूखा नहीं रह सकता
काम तो बंद है सभी के
तब ये सेक्स वर्कर
इनकी मजबूरी का है अंदाजा किसी को
किससे मांगे
कहाँ जाएं
किराया भी देना है
भोजन का भी प्रबंध करना है
बच्चों को पालना है
जीविका का कोई साधन नहीं
कितनी मजबूत और बेबस
यह कब तक चलेंगा
कह नहीं सकते
ग्राहकों से जो गलियां गुलजार होती थी
आज सूनी सूनी सी है
न गली में यह खडी
शाम होते जहाँ रौनक
आज सुनसान सी पडी है
अब यह इंतजार तो करती हैं
पर ग्राहक का नहीं
कोई राशन पानी बांट जाएं
खाना दे दे
आखिर पापी पेट का सवाल है

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