Tuesday, 25 August 2020

अंजान है सब

सुबह होती है
रात होती है
फिर अगले दिन वही सिलसिला
यह तो पहले भी होते थे
सही है
पर अब वह पहले जैसी बात नहीं
डर के साये में है जिंदगी
हर शख्स डरा हुआ
कब क्या हो
कहा नहीं जा सकता
कितने भी जतन करो
मास्क लगाओ
सेनिटाइज करो
सोशल डीशस्टिंग रखो
फिर भी
क्या जिन्होंने इसका प्रकोप झेला है
उन्होंने क्या इसका पालन नहीं किया ??
जान तो सबको प्यारी होती है
अपने लोग भी प्यारे होते हैं
अपने से ज्यादा फिक्र उनकी होती है
कोई भी यह जान बूझकर करना नहीं चाहेगा
फिर भी
हो गया
वह अमित शाह हो या अमिताभ बच्चन
सर्व सामान्य हो या गरीब
कुछ तो ऐसे ही घूमते हैं
बिना डर के
फिर भी वे महफूज हैं
तब क्या किया जाय
कितने दिन घर में ही बैठे रहेंगे
जरूरत है तो निकलना ही है
काम भी करना है
नहीं तो पेट पर बन आएगी
जो गए गाँव
वह वापस लौट रहे हैं
कैसे गुजर बसर होगा
सब अपनी जान हथेली पर लेकर बैठे हैं
ऐसा डर
इतना खौफ
पहले तो कभी नहीं दिखाई दिया
क्या कहा जाय
   हर शख्स डरा हुआ
   कब कहाँ से यह वायरस आ जाएं
  जानलेवा बन जाए
   गुलजार जिंदगी खो गई जाने कहाँ
   दोष किसका पता नहीं
   किससे आया
   किससे मिला
  वह कैसे जान सकते हैं
  जब स्वयं को ही पता नहीं
  यह क्या है
  सामान्य बीमारी या फिर वायरस का प्रकोप
  अंजान है सब
 
 
 
 
  

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