हम गए थे किसी के घर
दिलासा देने
सांत्वना देने
उनका दुख हल्का करने
उनकी पीड़ा में सहभागी बनने
क्या इसमें हमारा कुछ स्वार्थ न था
उनको बताने गए थे
जताने गए थे
हम तुम्हारे साथ है
इस मुश्किल घडी में
उपकार कर रहे थे
एहसान का एहसास दिला रहे थे
और तो और अपना दुख हल्का कर रहे थे
यह तो सबके साथ होता है
हमारे साथ भी हुआ था
हमारे मन को भी तसल्ली
इस दुनिया में गम के मारे हम अकेले ही नहीं
बहुत से है
कुछ देने से ज्यादा
सहने की ताकत लेने गए थे
यह हम जान बूझकर नहीं कर रहे थे
न सोच रहे थे
कि बुरा हो जाय
यह हमारा स्वार्थी अचेतन मन कर रहा था
कितनी ठंडक
जब हमारे जैसी पीडा किसी और को
तब जीने का
सहने का बहाना मिल जाता है
मानो या न मानो
है तो यह सच्चाई
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