Wednesday, 30 December 2020

अक्ल ठिकाने आ गई

दो हजार बीस ने बहुत कुछ कराया
घर बिठलाया
खाना बनवाया
बर्तन धुलवाया
झाडू - पोछा लगवाया
कपडे धुलवाया
सामान ढुलवाया
लाईन लगवाया
बोझा उठवाया
इतना सब करने के बाद भी पत्नी के ताने सुनवाया
इससे तो भाई ऑफिस अच्छा था
चाय पर चर्चा होती थी
गप्पा गोष्ठी होती थी
शाम को थक हार घर आते थे
तब खिदमतदारी होती थी
चाय - नाश्ता - पानी सब हाजिर रहता था
ठाठ रहता था
सुबह सुबह टिफिन से लेकर इस्तरी के कपडे तक
आखिर अब अपनी औकात समझ मे आ गई
घर में रहो तो सब करों
कोई किसी का गुलाम नहीं
काम करोंगे तब ही खैर
अन्यथा करना पडेगा यह सब
कुछ काम नहीं दिन भर
अब पता चला
दिन भर काम ही काम
ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया
तब उसकी अक्ल ठिकाने आ गई

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