कब मैं और तुम से हम हो गये
यह पता ही न चला
मैं , मैं न रही
तुम , तुम न रहें
एक - दूसरे में समाहित
अपने स्वयं को भूला बैठे
बस तुम ही तुम याद रहें
सपनों की दुनिया में सैर करने लगे
कल्पनाओ के सागर में गोते लगाने लगें
स्वयं पर अभिमान करने लगे
अपने को सबसे खूबसूरत समझने लगें
मन ही मन गीत गुनगुनाने लगे
अकेले में भी मुस्कराने लगें
काफी कुछ बदल गया
प्यार के कारण इतना बदलाव
सोचा तो न था
अब तो हर चीज सच लगता है
हर मौसम सुहाना लगता है
बिजली चमके चम चम
बरखा बरसे घन घन
शीत कांपे कप कप
गर्मी का पसीना भी मोती सम
पृथ्वी पर स्वर्ग
जंगल में भी मंगल
रात में भी उजास
नींद का नहीं होता आभास
जब तुम रहते हो आसपास
कब मैं और तुम से हम हो गये
यह पता ही न चला
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